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समावेशी विद्यालय का सृजन (Creating an Inclusive School )

     अति महत्वपूर्ण प्रश्न

समावेशी शिक्षा की अवधारणा :
शिक्षकों में विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं आज इस बात की जरूरत है कि वह पठन लेखन और गणित इन तीनों मूल्यों के साथ विशिष्ट बच्चे किसी भी क्षेत्र में दूसरे सामान्य बच्चे से पीछे न रहें। असमर्थ बालकों के लिए विशेष विद्यालयों की स्थापना की शुरुआत 18वीं शताब्दी के मध्य हुई थी। लेकिन जब से मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश किया है यह महसूस किया है कि हमें इन विशिष्ट बच्चों को अलग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक सामाजिक आर्थिक व शिक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है। समावेशी शिक्षा का प्रत्यय प्राचीन नहीं है बल्कि इसका प्रत्यय बिल्कुल नया है आज इस दिशा का महत्व सामान्य लोगों ने भी समझना शुरू कर दिया है भारत में समावेशी शिक्षा अमेरिका के मुख्य आंदोलन का ही परिणाम है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य विकलांगों को मुख्यधारा में लाना है। आंशिक रूप से अपंग बच्चों को सामान्य कक्षा में पढ़ाने तथा उनकी अच्छी देखभाल अध्यापक तथा दूसरी सहायता देने से अच्छे परिणाम सामने आए हैं ।इस बात पर अधिक जोर दिया जा रहा है कि कम अपंग बच्चों को विशेष शिक्षा ही नहीं अपितु समावेशी व मुख्य धारा की आवश्यकता है।

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समावेशी शिक्षा की आवश्यकता :
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिंदुओं के तहत स्पष्ट किया गया है
1. समानता का सिद्धांत :भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक बच्चे को बिना किसी भेदभाव के एक समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है हम बच्चों को शिक्षा देने हेतु किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए असमर्थ बच्चों को समावेशी शिक्षा देनी अनिवार्य है
2. प्राकृतिक वातावरण असमर्थ बच्चों को सामान्य विद्यालय के अंतर्गत नजदीक वातावरण मिलता है जब असमर्थ बच्चे सामान्य बच्चों के साथ साधारण विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनमें हीनता की भावना का विकास नहीं होता है कि वे किसी भी प्रकार से सामान्य बच्चे से कम है सामान्य बच्चे भी उनको अपना साथी समझने लग जाते हैं तथा असमर्थ बच्चे अपने आप को सजगता से उनके साथ समायोजित कर लेते हैं।
3. शैक्षिक वातावरण जब असमर्थ बच्चों को सामान्य विद्यालय में भेजा जाता है तो शैक्षिक तौर पर वह अपने आप को विद्यालय में समायोजित कर लेता है तथा उनके मन में यह विचार नहीं आता कि वह दूसरे बच्चों की अपेक्षा किसी भी क्षेत्र में कम है अध्यापक तथा दूसरे कर्मचारियों का सहयोग व्यवहार भी उनका अनुकूलन परिस्थितियों प्रदान करता है तथा बच्चा शैक्षिक दृष्टि से उन्नति करता है।
4. मानसिक विकास असमर्थ बच्चों को विशिष्ट शिक्षा अलग विद्यालयों में निपुण गया प्रशिक्षित अध्यापकों की देखरेख में प्रदान की जाती है लेकिन असमर्थ बच्चों में इस बात को लेकर मानसिक हीनता विकसित हो जाती है कि हमें सामान्य बच्चों के साथ क्यों नहीं पढ़ाया जा रहा जबकि हम भी उन जैसे ही है इनका उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इतना ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते जितना कि उनको करना चाहिए लेकिन समावेशी शिक्षा में असमर्थ बच्चों को सामान्य विद्यालय में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है साधारण बच्चों की तरह शिक्षा प्राप्त करने से उनमें आत्म सम्मान की भावना का विकास होता है।

समावेशी शिक्षा के उद्देश्य :
 समावेशी शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य को निम्नलिखित पंक्तियों में स्पष्ट किया गया है।
1. समाज में असमर्थ बच्चों में फैली भ्रांतियों को दूर करना
2. असमर्थ बच्चों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाना है 
3.समर्थ बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उनके पुनर्वास का प्रबंध करना
4. बच्चों की असमर्थता ओं का पता लगाकर उन को दूर करने का प्रयास करना 
5.बच्चों में आत्म निर्भरता की भावना का विकास करना 6.जागरूकता की भावना का विकास करना 
7.प्रजातांत्रिक मूल्यों के उद्देश्य को प्राप्त

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