पहले तीसरे पांचवें और छठे सेमेस्टर की परीक्षा या आंतरिक मूल्यांकन कराने की सिफारिश
लखनऊ :प्रदेश सरकार की ओर से कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की परीक्षा कराने के लिए गठित तीन कुलपतियों की कमेटी ने बृहस्पतिवार को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है समिति ने सेमेस्टर प्रणाली के पाठ्यक्रम में पहले, तीसरे, पांचवें और छठे सेमेस्टर की परीक्षा या आंतरिक मूल्यांकन कराने की संस्तुति की है जबकि दूसरे और चौथे सेमेस्टर की यदि परीक्षा नहीं हुई है तो उन्हें प्रोन्नत करने की संस्तुति की है; वहीं प्रदेश के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रथम द्वितीय वर्ष और स्नानकोतर प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के प्रोन्नत किए जाने की संस्तुति की है
तीन कुलपतियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया👇👇👇👇👇👇👇
उच्च शिक्षा विभाग की ओर से छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय और महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली के कुलपति प्रोफेसर कृष्णपाल सिंह की कमेटी गठित की थी कमेटी ने प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षा जगत से जुड़े प्रमुख लोगों से रायशुमारी करने के बाद रिपोर्ट तैयार की है रिपोर्ट में स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को प्रमोट करने की संस्तुति की है समिति का मानना है कि क्योंकि जो विद्यार्थी अभी द्वितीय वर्ष में है उन्हें सत्र 2020- 21 में भी बिना परीक्षा के प्रमोट किया गया था लिहाजा अगले वर्ष स्नातक अंतिम वर्ष की परीक्षा के साथ उनकी द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी ली जाएगी द्वितीय वर्ष की परीक्षा के अंकों के आधार पर प्रथम वर्ष के अंक निर्धारित किए जाए ताकि विद्यार्थी केवल 1 वर्ष की परीक्षा देकर ही पास में हो प्रथम वर्ष के जिन विद्यार्थियों को प्रमोट किया जाएगा उनकी द्वितीय वर्ष की परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर प्रथम वर्ष के अंक निर्धारित किए जाए! इसी प्रकार स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष के विद्यार्थी को प्रमोट कर दिया जाए लेकिन अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की परीक्षा आयोजित कराई जाए।।
परीक्षा का प्रारूप विश्वविद्यालय स्वयं तय कर सकते हैं
समिति ने स्नातक और स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष की परीक्षा का प्रारूप विश्वविद्यालय को उनके स्तर पर तय करने की छूट देने की संस्तुति की है प्रश्न पत्रों की संख्या, प्रश्नों की संख्या और पाठ्यक्रम भी विश्वविद्यालय तय कर सकते हैं!
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